English translation in Comments section
नहीं मयस्सर थे फ़क़त मुझे ही गुल
काँटों से ही सजा लिया गुलिस्तां मैंने
कहाँ फुरसत उसे पढ़े वो आशार मेरे
जिस से लिखे थे अफ़साने वाबस्ता मैंने
मुड़ कर देखा ही नहीं उस ज़ालिम ने
देर तलक ताका था उसका रास्ता मैंने
शायद अब भी हो सूरत-ए-विसाल कोई
सुनी हैं इश्क़ की ख़ुशनुमा दास्ताँ मैंने
कब तक करूँ सुबह का इंतज़ार अमित
अंधेरो से ही कर लिया समझौता मैंने
In response to: Reena’s Exploration Challenge # 81
Fabulous post
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Thanks!
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