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चाँद अभी भी मद्धम है
कब आओगे तुम प्रिय
बन के सूरज मेरे
देकर अपनत्व की गरिमा
करोगे रौशन अंतः मेरा।
चाँद अभी भी मद्धम है
कब आओगे तुम प्रिय
बन के हवा का झोंका
उड़ा के ज़ुल्फ़ें मेरी
करोगे उजागर रँग मेरा।
चाँद अभी भी मद्धम है
कब आओगे तुम प्रिय
बन के मन मीत मेरे
चूम कर अधर मेरे
करोगे कुंदन तन मेरा।
In response to:Reena’s Exploration Challenge #Week 62