A ray of hope … by hecblogger
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छटी नहीं है ग़म की काली घटा अभी
पर दिखती है आशा की किरन मुझे
कितनी गहरी होगी सोचो प्यास मेरी
लगता है दरया एक कतरा शबनम मुझे
सुनते है भर देता है वक़्त हर घाव
कैसी है यह फिर सीने में चुभन मुझे
किसको फुर्सत सुनता कोई नग़मा मेरा
हर शख़्स मिला अपने में मगन मुझे
नहीं रही मेरी पहले सी सूरत “अमित”
मत दिखलाओ अब कोई दर्पन मुझे
In response to: Reena’s Exploration Challenge # 170