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टूटे सपनों के कुछ टुकड़े
हैं आँखों में चुभते अब भी ।१।
किस्मत से तो लड़ भी लेता
रूठा है मुझसे रब भी ।२।
कितने दिन का हिज़्र है यारों
गिनने बैठूं गर शब् भी ।३।
याद मेरी भी आती होगी
खुद से लड़ती हो जब भी ।४।
ले अपने सर इल्ज़ाम अमित
क्या भूला है तू अदब भी ।५।
In response to:Reena’s Exploration Challenge #Week 53